Thursday, March 22, 2012

इक जरा छींक ही दो तुम

चिपचिपे दूध से नहलाते हैं, आंगन में खड़ा कर के तुम्हें


शहद भी, तेल भी, हल्दी भी, ना जाने क्या क्या

घोल के सर पे लुढ़काते हैं गिलासियाँ भर के



औरतें गाती हैं जब तीव्र सुरों में मिल कर

पाँव पर पाँव लगाए खड़े रहते हो

इक पथराई सी मुस्कान लिए

बुत नहीं हो तो परेशानी तो होती होगी



जब धुआँ देता, लगातार पुजारी

घी जलाता है कई तरह के छौंके देकर

इक जरा छींक ही दो तुम

तो यकीं आए कि सब देख रहे हो